नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की घटना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। इसके संबंध में निम्नलिखित जानकारी है:
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जो लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक सक्रिय रहा। यह विश्वविद्यालय विभिन्न विषयों में शिक्षा प्रदान करता था, जिसमें बौद्ध धर्म, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, और अन्य विज्ञान शामिल थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस
नालंदा विश्वविद्यालय को 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में तुर्की सेना द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इस विध्वंस के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
बख्तियार खिलजी का आक्रमण: बख्तियार खिलजी एक तुर्की जनरल था, जिसने बिहार और बंगाल के क्षेत्रों पर आक्रमण किया था। उसने नालंदा विश्वविद्यालय पर भी हमला किया और इसे नष्ट कर दिया।
धार्मिक और सांस्कृतिक असहमति: उस समय बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा था, जबकि तुर्की आक्रमणकारी मुस्लिम थे। यह धार्मिक और सांस्कृतिक असहमति भी विश्वविद्यालय के विध्वंस का एक कारण थी।
पुस्तकालय का जलाया जाना: नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, जिसमें लाखों ग्रंथ और पांडुलिपियां थीं, भी इस विध्वंस का शिकार हुआ। कहा जाता है कि इस पुस्तकालय को आग लगा दी गई थी और यह कई महीनों तक जलता रहा।
सामिल व्यक्ति
नालंदा विश्वविद्यालय के विध्वंस में मुख्य रूप से बख्तियार खिलजी और उसकी सेना सामिल थी। बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में तुर्की सैनिकों ने नालंदा पर आक्रमण किया और इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
परिणाम
इस विध्वंस के बाद नालंदा विश्वविद्यालय कभी पुनः स्थापित नहीं हो सका। यह घटना न केवल भारतीय इतिहास के लिए बल्कि वैश्विक शैक्षिक धरोहर के लिए भी एक बड़ी क्षति थी।
इस प्रकार, नालंदा विश्वविद्यालय का विध्वंस बख्तियार खिलजी और उसकी सेना द्वारा 12वीं शताब्दी में किया गया था, और यह घटना भारतीय शिक्षा और संस्कृति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।