तिलका मांझी: भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी की वीरगाथा

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जब भी महान सेनानियों की चर्चा होती है, तो झारखंड और बिहार के वीर तिलका मांझी का नाम सम्मान से लिया जाता है। वे पहले ऐसे आदिवासी योद्धा थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए और अपने लोगों को संगठित किया। उनका संघर्ष 1857 की क्रांति से भी पहले शुरू हो चुका था, लेकिन इतिहास के पन्नों में उनका नाम उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था। आज हम आपको तिलका मांझी की पूरी कहानी सुनाते हैं।

तिलका मांझी का जन्म और प्रारंभिक जीवन

तिलका मांझी का जन्म 1750 में बिहार के सुल्तानगंज (भागलपुर) जिले में हुआ था। वे संथाल जनजाति से आते थे, जो जंगलों में रहने वाली मेहनतकश और स्वतंत्रता-प्रिय जाति थी। आदिवासी समुदाय स्वाभाविक रूप से स्वतंत्र जीवन जीने में विश्वास रखता था, लेकिन अंग्रेजों ने उनके जल, जंगल और जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया।

बचपन से ही तिलका मांझी अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रवृत्ति रखते थे। वे न केवल एक बहादुर योद्धा थे, बल्कि अपनी जनजाति के लिए एक कुशल नेता भी साबित हुए। उन्होंने अपने लोगों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित की।

अंग्रेजों के खिलाफ तिलका मांझी का विद्रोह

18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने संथाल और अन्य आदिवासी समुदायों पर जबरदस्त जुल्म करना शुरू कर दिया था।

भारी कर वसूली: ब्रिटिश अधिकारी और जमींदार गरीब आदिवासियों से जबरन कर वसूलते थे।

जमीन हड़पना: आदिवासियों की उपजाऊ जमीनों पर कब्जा कर उन्हें बेघर किया जा रहा था।

शोषण और अत्याचार: संथालों को जबरदस्ती मजदूरी पर लगाया जाता और उनका शोषण किया जाता था।

इन सभी अन्यायों के खिलाफ तिलका मांझी ने 1771 में अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह किया। उन्होंने अपनी सेना तैयार की और गुरिल्ला युद्ध शैली अपनाई। उन्होंने जंगलों को अपनी लड़ाई का मैदान बनाया और कई जगहों पर ब्रिटिश सैनिकों को हराया।

ऑगस्टस क्लीवलैंड की हत्या

1784 में तिलका मांझी ने अंग्रेजी हुकूमत को करारा झटका दिया। उन्होंने भागलपुर के तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी ऑगस्टस क्लीवलैंड पर हमला कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। यह घटना अंग्रेजों के लिए एक बहुत बड़ा धक्का था।

अंग्रेजों को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई आदिवासी इस हद तक संगठित होकर उन्हें टक्कर दे सकता है। इस विद्रोह के बाद तिलका मांझी अंग्रेजों की नज़रों में सबसे बड़ा दुश्मन बन गए।

तिलका मांझी की गिरफ्तारी और बलिदान

ऑगस्टस क्लीवलैंड की हत्या के बाद अंग्रेजों ने तिलका मांझी को पकड़ने के लिए बड़े स्तर पर अभियान शुरू किया। हजारों सैनिक भेजे गए, लेकिन तिलका मांझी जंगलों में छिपकर अपने गुरिल्ला युद्ध कौशल का इस्तेमाल करते रहे।

अंततः 1785 में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उनकी गिरफ्तारी भी एक सामान्य घटना नहीं थी। जब अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ा, तो उन्हें रस्सियों से घोड़े के पीछे बांधकर पूरे भागलपुर में घसीटा गया। यह अंग्रेजों का क्रूर प्रतिशोध था।

13 जनवरी 1785 को अंग्रेजों ने उन्हें भागलपुर में एक बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी। इस तरह भारत का पहला आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गया।

तिलका मांझी की विरासत

तिलका मांझी की शहादत बेकार नहीं गई। उनकी क्रांति ने आगे चलकर 1855 का संथाल हूल और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। उनकी वीरता से प्रेरित होकर आदिवासी समुदायों ने अंग्रेजों के खिलाफ कई और विद्रोह किए।

आज भी तिलका मांझी का नाम इतिहास में अमर है:

✔ भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम “तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय” रखा गया है।

✔ झारखंड और बिहार में उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।

✔ हर साल 13 जनवरी को उनकी शहादत दिवस मनाया जाता है।

निष्कर्ष

तिलका मांझी केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले नायक थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। आज हमें उनके संघर्ष से प्रेरणा लेकर अपने देश के इतिहास और संस्कृति को संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए।

तिलका मांझी का बलिदान भारत की माटी में हमेशा जीवित रहेगा!”

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